Monday, 17 July 2017

वक़्त


जिंदगी को समझने कि कोशिश मे, उसे ही सताने लगे हैं,
मेरे कुछ दोस्त अब, बूढ़ाने लगें हैं!

जिनकी क़ुर्बत (closeness) से डरा करते थे तूफानों के मंजर,
वही नाव किनारे लगाने लगे हैं,
मेरे कुछ दोस्त, अब बूढ़ाने लगें हैं!

हर बेवजह बातों पे जो महफ़िलें सजाते थे,
वही आज ख़ामोशी से, घर जाने लगे हैं,
मेरे कुछ दोस्त, अब बूढ़ाने लगें हैं!

कभी जिसे मुठी में लियेे चला करते थे,
आज वही वक़्त से मार खाने लगे हैं
मेरे कुछ दोस्त अब बूढ़ाने लगें हैं!

उनके दिलों कि धड़कने, चुरा लिया करते थे कभी
वो आज खुद से ही नजरें चुराने लगे हैं
मेरे कुछ दोस्त अब बूढ़ाने लगें हैं!

यशपाल १७/०७/१७

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